दिनन के फेर

दिनन के फेर

पुस्तक समीक्षा

फिरते हुए दिनों की सीधी-सीधी कविताएँ

ताराचन्द ‘नादान’

कविता जब जो, जैसी लिखी गई है, यदि वैसी ही प्रेषित भी हो जाए, यानी सामने वाले तक वह ज्यों की त्यों पहुँच जाए और शब्द-चित्रा बनकर मनो-मस्तिष्क में तैर जाए तो वो अच्छी कविता हो जाती है।

कविता जब न सिर्फ हमारे इर्द-गिर्द के परिवेश को चित्रांकित कर दे, बल्कि हमारे रोजमर्रा की चीजें कविता का हिस्सा बन जाएँ, या यूँ कहें कि रोजमर्रा की वस्तुएँ ही कविता बन कर हमारे सामने खड़ी हो जाएँ तो कविता का आनंद दोगुना ही नहीं, चैगुना हो जाता है। ऐसी कविताओं को रचना आसान काम नहीं है और हरेक के बस की बात भी नहीं है।

दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध जानकी देवी मेमोरियल काॅलेज से वरिष्ठ प्राध्यापिका के गरिमामयी पद से सेवानिवृत्त वरिष्ठ कवयित्राी डाॅ. पुष्पा राही जी अपने दर्जन भर कविता संग्रहों में ये कमाल करके दिखा चुकी हैं। अपनी अनगिनत कविताओं, गीतों और दोहों में वे बड़ी शिद्दत से ये बता चुकीं हैं कि हमारे घर-आँगन की वस्तुएँ, हमारी रसोई की हर चीज, दिन-रात हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तमाम चीजें हमारी कविता के विषय, हमारी कविता के हिस्से और हमारी कविता का सौंदर्य बन सकते हैं।

इस साल उनका कविता संग्रह ‘दिनन के फेर’ पढ़ने को मिला। पढ़कर एक लंबी-चैड़ी फिल्म मनोमस्तिष्क में घूमती चली गई। सन् 2020 में पूरा विश्व एक महामारी की चपेट में आया जिसने जनमानस को बहुत कुछ सिखाया। ऐसा-ऐसा सिखाया, जिसकी कल्पना तक नहीं की जाती थी।

हम सोच भी नहीं पाते थे कि महीनों तक परिवार के साथ इतना समय बिता पाएँगे कभी।
पर बिता पाए। हम सोच भी नहीं पाते थे कि महीनों तक बिना कमाए जिंदा रह पाएँगे हम ।
पर जिंदा रहे ।
हम सोच भी नहीं पाते थे कि प्रकृति को कभी इतनी चैन की साँसें लेने दे पाएँगे कभी ।
पर वह भी हुआ।
हम सोच भी नहीं पाते थे कि स्वच्छता के प्रति इतना जागरूक हो पाएँगे कभी । पर हो पाए ।
हम सोच भी नहीं पाते थे कि शहरों के वासी रात में अपनी छत से आकाश में टिमटिमाते तारों की बारात को देख पाएँगे कभी। पर देख पाए ।
‘एक आपदा समय ने दी, बुरा था
पर उससे लड़ना हम सीख पाए, अच्छा था ।’
लोग दरबदर हुए, बुरा था
पर मदद को करोड़ों हाथ उठे, बहुत अच्छा था
रोजी रोटी कम हुई, बुरा था
पर मिल बाँट कर खाना सीखने लगे, अच्छा था’

हमनें जानकर या अनजाने में आपदा को बढ़ाया, बुरा था पर कुछ लोग फरिश्ते बन, अपना सुख चैन त्याग कर कर्मभाव और सेवाभाव में डटे, अच्छा था’
उन फरिश्तों द्वारा प्रदान की गई सेवा हम जानते हैं कि उनके लिए और उनके परिवार के लिए तकलीफदेह थी पर उनके सम्मान में हमनें खड़ा होना सीखा, ये अच्छा था।’ प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूल सोच के उदाहरण स्थापित हुए थे उस महामारी में।

डाॅ. पुष्पा राही जी का ये संग्रह ‘दिनन के फेर’ मानव जीवन पर आई विकराल महामारी कोरोना पर ही केंद्रित है। डाॅ. पुष्पा राही जी ने लगभग दो साल तक चली इस वैश्विक त्रासदी की स्थितियों, परिस्थितियों और विसंगतियों को जैसा देखा, झेला और महसूस किया उनको बड़ी सहजता से अपनी रचनाओं में ढाला है, जिनको पढ़ते हुए हम हर जगह अपने आप को खड़ा हुआ महसूस करते हैं। उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए लगता है कि उस परिस्थिति से दो-चार होते हुए हम अपने ही मन की बातों को उनके शब्दों में पढ़ रहे हैं।

हम सब जानते हैं कि वो समय घर के भीतर बैठने का था। तो ऐसे में टीवी पर खबरें देखने और उन्हें सच मानने के अलावा कर भी क्या सकते थे। सो इस पुस्तक में पुष्पा जी की दूसरी रचना की दो पंक्तियाँ ही इस बात को चित्रित कर देती हैं-

खबरों पर खबरें, खबरों पर खबरें भारी
सुनते-सुनते चलने लगती दिल पर आरी

अच्छे दिन आते-आते ही आते हैं
बुरे दिनों के पर ताँते लग जाते हैं

परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव के झूले में झूलते मन के भाव देखिएµ
ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर, खूब झुलाया झूले ने
ऊठक-बैठक हुई हृदय की, खूब रुलाया झूले ने
….
कोविड लगता सुरसा का मुँह निगल रहा बेखटके
कहाँ मिलेंगे हनुमान जो करे सामना डटके
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जीवन को जीने का अब तो ढंग बदलना होगा
जैसे जीते आए हैं वह सभी पलटना होगा
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जब अपने पर पड़ी समझ में आया कोरोना
अब तक तो बस खबरों में था छाया कोरोना
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कमरे से कमरे की दूरी
किसी नाप में हुई न पूरी

बस थी एक दीवार बीच में
फिर भी मिलने की मजबूरी

ये चंद छोटे-छोटे नमूने मैंने इस किताब में से आपको साझा किए है वरना कोरोना-काल का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जिसे पुष्पा जी ने अपनी कविता में न ढाला हो।
48 गीतात्मक कविताएँ, 34 दोहे और 14 मुक्तकों से सजा, लिटिल बर्ड पब्लिकेशन्स, दिल्ली से छपा अपनी तरह का एक खूबसूरत गुलदस्ता है ये कविता संग्रह, जो अपनी कहन के सहज-सुलभ ढंग की वजह से विशेष बन जाता है।

आदरणीया पुष्पा राही जी को इस संग्रह के लिए मेरी हार्दिक बधाई। आपकी लेखनी शतत गतिशील रहे और पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे। ु

समीक्षक का पता- ताराचन्द ‘नादान’
कवि-शायर, दिल्ली
मो. 9582279345