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दिनन के फेर

पुस्तक समीक्षा फिरते हुए दिनों की सीधी-सीधी कविताएँ ताराचन्द ‘नादान’ कविता जब जो, जैसी लिखी गई है, यदि वैसी ही प्रेषित भी हो जाए, यानी सामने वाले तक वह ज्यों की त्यों पहुँच जाए और शब्द-चित्रा बनकर मनो-मस्तिष्क में...

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