हिंदी कहानी और भूमण्डलीकरण
पुस्तक समीक्षा
भूमंडलीकरण में कहानी अनेकों मुद्दों से जूझ रही है
कुसुमलता सिंह
हाल ही में वेदप्रकाश सिंह की शोधपरक पुस्तक ‘हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण’ प्रकाशित हुई है। जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है कि भूमंडलीकरण के संदर्भ या उसकी अवधारणा के साथ हिंदी कहानी का स्वरूप और प्रभाव जैसे विस्तृत विषय को लेकर यह पुस्तक हिंदी साहित्य के संसार में आई है। पुस्तक पर कुछ कहने से पहले इसके लेखक का परिचय देना भी उपयुक्त होगा। इन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ”हिंदी कहानी में भूमंडलीकरण की संस्कृति के प्रभाव का अध्ययन“ विषय पर अपनी पी.एच.डी की। दिल्ली में कई महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् 2017 से वे जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ता पद पर कार्य कर रहे हैं।
‘हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण’ पुस्तक में सारगर्भित भूमिका के बाद 5 खंड हैं। पहले खंड में कहानी और उसका स्वरूप दिए गए हैं 2. भूमंडलीकरण की संस्कृति का स्वरूप और प्रभाव 3. हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण के तीन खंड हैं। (एक), हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण (दो), हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण (तीन) कहानी के नामों के साथ पाँच खंड में विभाजित है। अपनी भूमिका में एक जगह वे लिखते हैं किµ ‘भूमंडलीकरण के प्रभाव से ऋणी देशों को विश्व बैंक की उन नीतियों और शर्तों को भी मानना पड़ा जिनसे भयंकर अमानवीय परिणाम सामने आए। अब जाहिर सी बात है कि इस सबका प्रभाव हमारी कहानियों और रचनाकारों पर पड़ा होगा।“ इस पुस्तक में लेखक ने समकालीन राजनीतिक-आर्थिक परिस्थितियों की विवेचना करने के बाद उन कहानीकारों पर विचार किया है जो पहले से कहानी लिखते आ रहे हैं। उसके बाद वे हैं जिन्होंने इस परिदृश्य को अपनी कहानियों में विस्तार दिया फिर वे सारे कहानीकार जिन्होंने नए मार्ग का चुनाव किया।
भूमंडलीकरण आज वर्तमान रूप में वैश्वीकरण की ऐसी धारणा बन गई है जिसका मूलाधार बाजार, बाजारवाद और उपभोक्तावाद है। इसीलिए लेखक का मानना हैै कि भूमंडलीकरण की विश्व व्यवस्था जिस संस्कृति का निर्माण कर रही है उसे वर्तमान कहानी विभिन्न रूपों में दिखाते हुए उसका विरोध भी कर रही है। इसी का खुलासा वे पुस्तक के शुरू के दो अध्याय ”भूमंडलीकरण का अर्थ और उसका स्वरूप “ तथा ”भूमंडलीकरण की संस्कृति का स्वरूप और प्रभाव“ में करते हैं। ”हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण-1 में वे कहानी की परंपरा से करते हैंµ ‘‘कहानी कहने की प्रथा कोई नई चीज नहीं है, पर ‘कहानी’ नामक नया साहित्यांग आधुनिक युग की देन है। यह भी प्रेस और यातायात के नवीन साधनों की सहायता से विकसित हुआ है और लोकप्रिय बना है। शुरू-शुरू में पश्चिमी देशों में भी उपन्यास और कहानी में कोई भेद नहीं किया जाता था। परंतु जैसे-जैसे सभ्यता की भीड़भाड़ बढ़ती गई, वैसे-वैसे अल्प समय साध्य छोटे-छोटे साहित्यांगों का विकास भी होता गया। यह साहित्य का सभ्यता के साथ ताल मिलाकर चलने का प्रयास है।“ भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, जयशंकर प्रसाद, की पहली कहानी से चर्चा करते हुए, प्रेमचंद की कहानियांे के विषय में कहते हैं कि उनकी कहानियों में हिंदी नवजागरण और राष्ट्रीय जागरण की भंगिमा परिलक्षित होती है। संस्कृति की उत्तरकथा में शंभुनाथ ने उपभोक्तावाद के बारे में लिखा हैµ ”उपभोक्तावाद ने आधुनिक युग में धीरे-धीरे पैसे का आदमी से ज्यादा महत्व कर दिया है। परिणामस्वरूप मानवीय संबंध और संवेदना के सबसे निश्छल कोनों में भी बाजार पहुँच गया है और पैसा अहम हो गया।“ इसी अंश के अंत में लेखन ने जहाँ प्रतिस्पर्धात्मक स्थितियों के प्रभाव की बात की है। इसमें संजीव की कहानी ‘ब्लैक होल’ का एक अंश देखेंµ हिंदी कहानी और भूमंडलीकरण-2 में पंखुरी सिन्हा की कहानी ”कोई भी दिन“ का जिक्र करते हुए कहते हैं कि भारतीय मध्य वर्ग कैसे दिनों दिन तर्कहीन आचरण को अपना रहा है। एक उदाहरण देखेंµ ”असल में बात यह है कि मकर संक्रांति यानि कि 14 जनवरी इस बार मंगलवार को पड़ रही थी। और कुछ लोगों का यह कहना है कि मंगल को तिल का दान नहीं करना चाहिए। तिल का दान किए बगैर पर्व नहीं मनाया जा सकता। इसलिए बहुत से लोग बुधवार को मकर संक्रांति मना रहे है।“ प्रभात रंजन की कहानी ‘जानकी पुल’ के माध्यम से विकास का प्रतीक बने फ्लाई ओवर का संदर्भ लेकर अनेक ऐसे पुल जिन्हें छोटे शहरों में बनना है वे अपने बनने के लिए सरकार का मुँहजोह रहे हैं। यह पुस्तक हमें अनेक प्रश्न देती है भूमंडलीकरण में हिंदी कहानी किन-किन मुद्दों से जूझ रही है इस पर भी सोचने को विवश करती है। चाहे वह मुद्दा, अपराध जगत और आतंकवाद, सांस्कृतिक विस्थापन भ्रष्टाचार या भाषा और साहित्य जैसे किसी भी विषय पर हो सकता है।
यह पुस्तक लिटिल बर्ड प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और अपनी साज-सज्जा में आकर्षित करती है। विश्वास है कि यह पुस्तक हिंदी साहित्य में समादृत होगी।ु
लेखक का मेलः zedprakashsinghhmp@gmail.com
समीक्षक मो.ः 99682-88050